पोलियो
पोलियो एक संक्रामक रोग है जो पोलियोवायरस के कारण होता है और मुख्य रूप से पांच साल से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है। यह वायरस मुख्य रूप से मल-मुख मार्ग से फैलता है, जिसका अर्थ है कि यह संक्रमित व्यक्ति के मल के संपर्क में आने से फैलता है और दूषित पानी या भोजन के माध्यम से भी फैल सकता है।
पोलियो क्या हैं?
पोलियो (Poliomyelitis) एक संक्रामक रोग है जो पोलियोवायरस के कारण होता है। यह मुख्य रूप से 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है।
पोलियो कैसे फैलता है?
पोलियोवायरस मुख्य रूप से मल-मुख मार्ग से फैलता है, जिसका अर्थ है कि यह संक्रमित व्यक्ति के मल के संपर्क में आने से फैलता है। यह दूषित पानी या भोजन के माध्यम से भी फैल सकता है। कम बार, यह संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने से निकलने वाली बूंदों से फैल सकता है।
पोलियो के लक्षण क्या हैं?
अधिकांश लोगों में जो पोलियोवायरस से संक्रमित होते हैं, उनमें कोई लक्षण नहीं होते हैं या हल्के, फ्लू जैसे लक्षण होते हैं, जिनमें शामिल हो सकते हैं:
- बुखार
- थकान
- सिरदर्द
- उल्टी
- गर्दन में अकड़न
- अंगों में दर्द
हालांकि, लगभग 1% मामलों में, वायरस तंत्रिका तंत्र पर आक्रमण करता है और लकवा का कारण बन सकता है, आमतौर पर पैरों में। लकवा स्थायी हो सकता है और कुछ मामलों में घातक हो सकता है, खासकर यदि यह सांस लेने वाली मांसपेशियों को प्रभावित करता है।
पोलियो का खतरा क्या है?
पोलियो एक गंभीर बीमारी है जो स्थायी विकलांगता और मृत्यु का कारण बन सकती है। यह विशेष रूप से छोटे बच्चों के लिए खतरनाक है।
पोलियो से बचाव कैसे किया जा सकता है?
पोलियो को टीकाकरण द्वारा रोका जा सकता है। पोलियो वैक्सीन सुरक्षित और प्रभावी है और बच्चों को इस बीमारी से बचाने के लिए कई खुराक में दी जाती है।
भारत में पोलियो की स्थिति क्या है?
भारत को 2014 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा पोलियो मुक्त घोषित किया गया था। भारत ने टीकाकरण के व्यापक प्रयासों के माध्यम से पोलियो को सफलतापूर्वक समाप्त कर दिया है। हालांकि, पोलियो के फिर से उभरने के जोखिम को कम करने के लिए निगरानी और टीकाकरण के प्रयास जारी हैं।
यदि आपके पास पोलियो या टीकाकरण के बारे में कोई चिंता है, तो कृपया अपने स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से बात करें।
पोलियो के कारण क्या हैं?
पोलियो का मुख्य कारण पोलियोवायरस नामक एक वायरस है। यह वायरस मुख्य रूप से दो तरीकों से फैलता है:
- मल-मुख मार्ग (Fecal-oral route): यह पोलियोवायरस फैलने का सबसे आम तरीका है। ऐसा तब होता है जब किसी संक्रमित व्यक्ति का मल किसी अन्य व्यक्ति के मुंह में चला जाता है, भले ही यह बहुत कम मात्रा में हो। यह दूषित हाथों, भोजन या पानी के माध्यम से हो सकता है। खराब स्वच्छता और साफ-सफाई की कमी वाले क्षेत्रों में यह तरीका विशेष रूप से आम है।
- श्वसन बूंदें (Respiratory droplets): कम सामान्यतः, पोलियोवायरस संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने से निकलने वाली छोटी बूंदों के माध्यम से फैल सकता है।
एक बार जब पोलियोवायरस शरीर में प्रवेश कर जाता है, तो यह आंतों में बढ़ता है। वहां से, यह रक्तप्रवाह में प्रवेश कर सकता है और कुछ मामलों में, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क) पर आक्रमण कर सकता है। जब वायरस तंत्रिका तंत्र पर हमला करता है, तो यह उन तंत्रिका कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है जो मांसपेशियों को नियंत्रित करती हैं, जिससे लकवा हो सकता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि:
- कई लोग जो पोलियोवायरस से संक्रमित होते हैं, उनमें कोई लक्षण नहीं दिखते हैं या हल्के फ्लू जैसे लक्षण होते हैं, लेकिन वे अभी भी वायरस फैला सकते हैं।
- पोलियोवायरस अत्यधिक संक्रामक है और आसानी से व्यक्ति से व्यक्ति में फैल सकता है।
- पोलियो मुख्य रूप से 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है, लेकिन किसी भी उम्र का व्यक्ति जो टीकाकृत नहीं है, वह संक्रमित हो सकता है।
पोलियो के संकेत और लक्षण क्या हैं?
पोलियो के संकेत और लक्षण संक्रमण की गंभीरता के आधार पर भिन्न हो सकते हैं। कई लोगों में कोई लक्षण नहीं दिखते हैं, जबकि कुछ में हल्के फ्लू जैसे लक्षण होते हैं, और कुछ में गंभीर और स्थायी जटिलताएँ विकसित हो सकती हैं।
पोलियो संक्रमण के तीन मुख्य प्रकार हैं, और प्रत्येक के अपने विशिष्ट संकेत और लक्षण हैं:
1. गैर-लकवाग्रस्त पोलियो (Abortive Poliomyelitis): यह पोलियो का सबसे आम रूप है और इसमें हल्के, फ्लू जैसे लक्षण शामिल होते हैं जो आमतौर पर 2 से 10 दिनों तक रहते हैं और पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं। इन लक्षणों में शामिल हो सकते हैं:
- बुखार
- थकान
- सिरदर्द
- उल्टी
- दस्त
- गले में खराश
- सामान्य अस्वस्थता (malaise)
2. गैर-लकवाग्रस्त पोलियो (Aseptic Meningitis): इस प्रकार के पोलियो में गैर-लकवाग्रस्त पोलियो के कुछ लक्षणों के साथ मेनिन्जाइटिस (मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के आसपास की झिल्लियों की सूजन) के लक्षण भी शामिल होते हैं। इन लक्षणों में शामिल हो सकते हैं:
- ऊपर बताए गए हल्के फ्लू जैसे लक्षण
- गर्दन में अकड़न
- पीठ में अकड़न
- दर्द या अकड़न
- प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता (photophobia)
3. लकवाग्रस्त पोलियो (Paralytic Poliomyelitis): यह पोलियो का सबसे गंभीर रूप है और यह स्थायी विकलांगता और मृत्यु का कारण बन सकता है। लकवाग्रस्त पोलियो के शुरुआती लक्षण गैर-लकवाग्रस्त पोलियो के समान हो सकते हैं, लेकिन कुछ दिनों या हफ्तों के बाद अधिक गंभीर लक्षण विकसित होते हैं, जिनमें शामिल हैं:
- अचानक मांसपेशियों में कमजोरी या लकवा, अक्सर पैरों में शुरू होता है और शरीर के अन्य हिस्सों में फैल सकता है
- शरीर के एक तरफ अधिक गंभीर कमजोरी या लकवा
- मांसपेशियों में दर्द या ऐंठन
- रिफ्लेक्स का नुकसान
- ढीली और लचीली अंग (flaccid paralysis)
- गंभीर मामलों में, सांस लेने वाली मांसपेशियों का लकवा, जिससे सांस लेने में कठिनाई या विफलता हो सकती है
पोस्ट-पोलियो सिंड्रोम (Post-Polio Syndrome – PPS): यह एक ऐसी स्थिति है जो पोलियो के मूल संक्रमण के कई दशकों बाद विकसित हो सकती है। PPS की विशेषता है:
- मांसपेशियों में कमजोरी और थकान जो धीरे-धीरे खराब होती जाती है
- मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द
- मांसपेशियों का क्षीण होना (muscle atrophy)
- ठंड के प्रति संवेदनशीलता
- सांस लेने या निगलने में कठिनाई
- नींद संबंधी विकार
पोलियो का खतरा किसे अधिक होता है?
पोलियो का खतरा मुख्य रूप से उन लोगों को अधिक होता है जिन्होंने टीकाकरण नहीं करवाया है। इसके अतिरिक्त, कुछ अन्य कारक भी जोखिम को बढ़ा सकते हैं:
सबसे अधिक खतरा:
- टीकाकरण न किए गए बच्चे: 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे पोलियो से संक्रमित होने और लकवा विकसित होने के लिए सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं क्योंकि उन्होंने टीकाकरण की पूरी श्रृंखला प्राप्त नहीं की होती है।
- टीकाकरण न किए गए वयस्क: जिन वयस्कों को बचपन में टीका नहीं लगाया गया है या जिन्होंने बूस्टर खुराक नहीं ली है, वे भी पोलियो के प्रति संवेदनशील होते हैं, खासकर यदि वे ऐसे क्षेत्रों की यात्रा करते हैं जहाँ पोलियो अभी भी मौजूद है।
अन्य कारक जो जोखिम बढ़ा सकते हैं:
- गैर-टीकाकृत आबादी वाले क्षेत्रों में रहना या यात्रा करना: कुछ देशों में पोलियो अभी भी स्थानिक है। इन क्षेत्रों में रहने वाले या यात्रा करने वाले गैर-टीकाकृत लोगों को संक्रमण का खतरा अधिक होता है।
- खराब स्वच्छता और साफ-सफाई की स्थिति: जहां स्वच्छता और साफ-सफाई की व्यवस्था खराब है, वहां मल-मुख मार्ग से पोलियोवायरस फैलने का खतरा अधिक होता है।
- कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली: कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों में पोलियोवायरस से संक्रमित होने और गंभीर जटिलताओं का खतरा अधिक हो सकता है। इसमें एचआईवी/एड्स वाले लोग, अंग प्रत्यारोपण प्राप्तकर्ता या कुछ चिकित्सीय स्थितियों वाले लोग शामिल हैं।
- गर्भावस्था: गर्भवती महिलाओं में पोलियो संक्रमण होने पर गंभीर जटिलताओं का खतरा थोड़ा अधिक हो सकता है।
- स्वास्थ्य कार्यकर्ता जो पोलियो रोगियों के संपर्क में आते हैं और जिन्होंने पूरी तरह से टीकाकरण नहीं करवाया है: ऐसे स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को संक्रमण का खतरा हो सकता है यदि वे उचित सुरक्षात्मक उपाय न करें।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि:
- टीकाकरण पोलियो से बचाव का सबसे प्रभावी तरीका है और यह सभी उम्र के लोगों के लिए महत्वपूर्ण है।
- जिन क्षेत्रों में पोलियो का खतरा बना हुआ है, वहां यात्रा करने से पहले यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि आपका टीकाकरण अद्यतित है।
पोलियो से कौन सी बीमारियां जुड़ी हैं?
पोलियो सीधे तौर पर कोई अन्य संक्रामक बीमारी नहीं फैलाता है। यह स्वयं एक संक्रामक रोग है जो पोलियोवायरस के कारण होता है। हालांकि, पोलियो के कारण होने वाली जटिलताओं और दीर्घकालिक प्रभावों के परिणामस्वरूप कुछ संबंधित स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं:
1. लकवा (Paralysis): पोलियो का सबसे गंभीर परिणाम लकवा है, जो अस्थायी या स्थायी हो सकता है। लकवाग्रस्त मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और उनका नियंत्रण खो जाता है। यदि सांस लेने वाली मांसपेशियां लकवाग्रस्त हो जाती हैं, तो यह जानलेवा हो सकता है।
2. मांसपेशियों का क्षीण होना (Muscle Atrophy): लकवाग्रस्त या कमजोर मांसपेशियों का उपयोग न होने पर वे समय के साथ क्षीण हो सकती हैं।
3. हड्डियों और जोड़ों की विकृति: मांसपेशियों की कमजोरी के कारण हड्डियों और जोड़ों पर असामान्य दबाव पड़ सकता है, जिससे विकृति हो सकती है, जैसे कि स्कोलियोसिस (रीढ़ की हड्डी का टेढ़ा होना) या पैरों और कूल्हों में समस्याएं।
4. पुरानी दर्द: पोलियो से प्रभावित लोगों को मांसपेशियों और जोड़ों में पुरानी दर्द का अनुभव हो सकता है।
5. सांस लेने और निगलने में समस्या: यदि पोलियो मस्तिष्क स्तंभ (brainstem) की मांसपेशियों को प्रभावित करता है, तो सांस लेने और निगलने में कठिनाई हो सकती है, जिससे निमोनिया या अन्य श्वसन संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है।
6. पोस्ट-पोलियो सिंड्रोम (Post-Polio Syndrome – PPS): यह एक ऐसी स्थिति है जो पोलियो के मूल संक्रमण के कई दशकों बाद विकसित हो सकती है। PPS की विशेषता है नई मांसपेशियों की कमजोरी, थकान, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द, और अन्य लक्षण। यह सीधे पोलियोवायरस के पुनर्सक्रियन के कारण नहीं होता है, बल्कि संभवतः प्रारंभिक पोलियो संक्रमण के दीर्घकालिक प्रभावों के कारण होता है।
पोलियो का निदान कैसे करें?
पोलियो का निदान मुख्य रूप से व्यक्ति के लक्षणों, शारीरिक परीक्षण और प्रयोगशाला परीक्षणों के संयोजन के आधार पर किया जाता है।
निदान के चरण:
- चिकित्सा इतिहास और शारीरिक परीक्षण: डॉक्टर सबसे पहले रोगी के चिकित्सा इतिहास के बारे में पूछेंगे, जिसमें टीकाकरण का इतिहास, हाल की यात्राएं और लक्षणों का विवरण शामिल है। इसके बाद वे एक शारीरिक परीक्षण करेंगे, जिसमें निम्न शामिल हो सकते हैं:
- मांसपेशियों की ताकत और टोन का आकलन करना
- रिफ्लेक्स की जांच करना
- संवेदना का मूल्यांकन करना
- गर्दन की अकड़न और अन्य मेनिन्जाइटिस के लक्षणों की जांच करना
- प्रयोगशाला परीक्षण: पोलियोवायरस की उपस्थिति की पुष्टि करने और अन्य संभावित कारणों को दूर करने के लिए प्रयोगशाला परीक्षण किए जाते हैं। इनमें शामिल हो सकते हैं:
- मल का नमूना परीक्षण: पोलियोवायरस अक्सर मल में मौजूद होता है, खासकर संक्रमण के शुरुआती चरणों में। वायरस को कल्चर करने या वायरल आरएनए (RNA) का पता लगाने के लिए मल के नमूने लिए जा सकते हैं। यह निदान का सबसे महत्वपूर्ण तरीका है।
- गले का स्वाब (Throat Swab): कुछ मामलों में, संक्रमण के शुरुआती चरणों में गले के स्वाब में भी वायरस पाया जा सकता है।
- सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड (CSF) विश्लेषण: यदि मेनिन्जाइटिस के लक्षण मौजूद हैं, तो रीढ़ की हड्डी से तरल पदार्थ (CSF) का नमूना लेने के लिए एक लम्बर पंक्चर (स्पाइनल टैप) किया जा सकता है। CSF में श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि और प्रोटीन के स्तर में बदलाव पोलियो संक्रमण का संकेत दे सकता है। पोलियोवायरस को सीधे CSF से कल्चर भी किया जा सकता है, हालांकि यह मल के नमूने की तुलना में कम आम है।
- रक्त परीक्षण: रक्त परीक्षण पोलियोवायरस के प्रति एंटीबॉडी की उपस्थिति का पता लगा सकते हैं। हालांकि, एंटीबॉडी विकसित होने में समय लगता है, और टीकाकरण के कारण भी एंटीबॉडी मौजूद हो सकते हैं, इसलिए रक्त परीक्षण अकेले निदान के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है। वे संक्रमण के बाद के चरणों में या महामारी विज्ञान संबंधी जांच में अधिक उपयोगी होते हैं।
- विभेदक निदान: डॉक्टर अन्य बीमारियों को भी ध्यान में रखेंगे जिनके लक्षण पोलियो के समान हो सकते हैं, जैसे कि:
- गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (Guillain-Barré Syndrome)
- ट्रांसवर्स मायलाइटिस (Transverse Myelitis)
- अन्य वायरल एन्सेफलाइटिस या मेनिन्जाइटिस
- कुछ प्रकार के पक्षाघात जो अन्य कारणों से होते हैं
पोलियो का इलाज क्या है?
दुर्भाग्य से, पोलियो का कोई विशिष्ट इलाज नहीं है जो पोलियोवायरस को मार सके या लकवा को ठीक कर सके। एक बार जब पोलियोवायरस तंत्रिका तंत्र पर आक्रमण कर देता है और लकवा हो जाता है, तो उस क्षति को उलटना संभव नहीं है।
पोलियो के प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य लक्षणों को कम करना, जटिलताओं को रोकना और रोगी को सहायक देखभाल प्रदान करना है।
पोलियो के इलाज और प्रबंधन में शामिल हैं:
- आराम: शरीर को संक्रमण से लड़ने में मदद करने के लिए पर्याप्त आराम महत्वपूर्ण है।
- दर्द निवारक: मांसपेशियों के दर्द और ऐंठन को कम करने के लिए ओवर-द-काउंटर दर्द निवारक दवाएं जैसे कि इबुप्रोफेन या एसिटामिनोफेन का उपयोग किया जा सकता है।
- हीट थेरेपी और मालिश: मांसपेशियों के दर्द और ऐंठन को कम करने में मदद कर सकती है।
- शारीरिक थेरेपी (फिजिकल थेरेपी): लकवा से प्रभावित मांसपेशियों की ताकत और कार्य को बनाए रखने या सुधारने में मदद करती है। इसमें व्यायाम, स्ट्रेचिंग और गति की सीमा वाले व्यायाम शामिल हो सकते हैं।
- ऑक्यूपेशनल थेरेपी (व्यावसायिक थेरेपी): दैनिक जीवन की गतिविधियों को करने के लिए अनुकूलन और सहायक उपकरणों का उपयोग करना सिखाती है।
- सहायक उपकरण: लकवा से प्रभावित अंगों को सहारा देने और गतिशीलता में सुधार के लिए ब्रेसेस, बैसाखी, व्हीलचेयर या अन्य सहायक उपकरणों का उपयोग किया जा सकता है।
- वेंटिलेटर सपोर्ट: यदि सांस लेने वाली मांसपेशियां लकवाग्रस्त हो जाती हैं, तो रोगी को सांस लेने में सहायता के लिए वेंटिलेटर की आवश्यकता हो सकती है।
- पोषण और जलयोजन: पर्याप्त पोषण और जलयोजन समग्र स्वास्थ्य और रिकवरी के लिए महत्वपूर्ण हैं।
- द्वितीयक संक्रमणों का प्रबंधन: पोलियो से कमजोर हुए रोगियों में निमोनिया या मूत्र पथ के संक्रमण जैसे द्वितीयक संक्रमण विकसित होने का खतरा अधिक होता है, जिनका तुरंत इलाज किया जाना चाहिए।
पोस्ट-पोलियो सिंड्रोम का प्रबंधन:
पोलियो से बचे लोगों में कई वर्षों बाद पोस्ट-पोलियो सिंड्रोम विकसित हो सकता है। इसका कोई विशिष्ट इलाज नहीं है, लेकिन प्रबंधन में शामिल हैं:
- जीवनशैली में बदलाव: अत्यधिक थकान से बचने के लिए गतिविधियों को संतुलित करना और आराम करना।
- दर्द प्रबंधन: दर्द निवारक दवाएं, हीट थेरेपी, मालिश और अन्य तकनीकों का उपयोग करना।
- शारीरिक और व्यावसायिक थेरेपी: मांसपेशियों की ताकत और कार्य को बनाए रखने और दैनिक जीवन की गतिविधियों को प्रबंधित करने में मदद करना।
- सहायक उपकरण: कमजोरी या दर्द को कम करने के लिए ब्रेसेस या अन्य उपकरणों का उपयोग करना।
पोलियो में क्या खाएं और क्या न खाएं?
पोलियो होने पर कोई विशिष्ट आहार योजना नहीं है जो सीधे तौर पर बीमारी को ठीक कर सके। हालांकि, उचित पोषण समग्र स्वास्थ्य और रिकवरी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, खासकर यदि आपको सांस लेने या निगलने में कठिनाई हो रही हो या यदि आप पोस्ट-पोलियो सिंड्रोम का अनुभव कर रहे हों।
पोलियो होने पर क्या खाएं:
- पोषक तत्वों से भरपूर आहार: ऐसा भोजन खाएं जो विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर हो। इसमें फल, सब्जियां, साबुत अनाज और लीन प्रोटीन (जैसे मछली, चिकन, बीन्स और दालें) शामिल हैं।
- पर्याप्त प्रोटीन: मांसपेशियों की मरम्मत और ताकत बनाए रखने के लिए प्रोटीन आवश्यक है, खासकर यदि आपको मांसपेशियों में कमजोरी या क्षीणता है।
- आसान से पचने वाले खाद्य पदार्थ: यदि आपको पेट खराब है या निगलने में कठिनाई हो रही है, तो नरम, आसानी से पचने वाले खाद्य पदार्थों का चयन करें, जैसे कि मसले हुए आलू, दलिया, दही, सूप और उबले हुए फल और सब्जियां।
- पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ: डिहाइड्रेशन से बचने के लिए खूब पानी, जूस, शोरबा या हर्बल चाय पिएं। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है यदि आपको बुखार या उल्टी हो रही है।
- छोटे, बार-बार भोजन: यदि आपको भूख कम लगती है या पेट भरा हुआ महसूस होता है, तो दिन भर में छोटे-छोटे भोजन करें।
- नरम और मसले हुए खाद्य पदार्थ: यदि आपको निगलने में कठिनाई हो रही है (डिस्फेजिया), तो नरम, मसले हुए या प्यूरी किए हुए खाद्य पदार्थों का चयन करें। आपको तरल पदार्थों को गाढ़ा करने की भी आवश्यकता हो सकती है, लेकिन इसके लिए डॉक्टर या स्पीच थेरेपिस्ट से सलाह लें।
पोलियो होने पर क्या न खाएं:
- प्रसंस्कृत और जंक फूड: इनमें अक्सर पोषक तत्व कम होते हैं और ये सूजन को बढ़ा सकते हैं।
- उच्च वसा वाले खाद्य पदार्थ: ये पचाने में मुश्किल हो सकते हैं।
- मसालेदार और अम्लीय खाद्य पदार्थ: ये पेट में जलन पैदा कर सकते हैं, खासकर यदि आपको पेट खराब है।
- कच्चे या अधपके खाद्य पदार्थ: संक्रमण के दौरान खाद्य जनित बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।
- ऐसे खाद्य पदार्थ जिनसे निगलने में कठिनाई हो: सूखे, चिपचिपे या सख्त खाद्य पदार्थों से बचें यदि आपको निगलने में समस्या हो रही है।
- अत्यधिक कैफीन और शराब: ये डिहाइड्रेशन को बढ़ा सकते हैं और कुछ दवाओं के साथ परस्पर क्रिया कर सकते हैं।
पोस्ट-पोलियो सिंड्रोम के लिए अतिरिक्त विचार:
यदि आपको पोस्ट-पोलियो सिंड्रोम है, तो थकान को प्रबंधित करने के लिए अपने आहार पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है।
- संतुलित आहार: ऊर्जा के स्तर को स्थिर रखने के लिए नियमित, संतुलित भोजन करें।
- जटिल कार्बोहाइड्रेट: साबुत अनाज जैसे जटिल कार्बोहाइड्रेट ऊर्जा का एक स्थिर स्रोत प्रदान करते हैं।
- पर्याप्त जलयोजन: थकान को कम करने में मदद करता है।
महत्वपूर्ण सलाह:
- व्यक्तिगत आवश्यकताएं: प्रत्येक व्यक्ति की पोषण संबंधी आवश्यकताएं अलग-अलग होती हैं। अपनी विशिष्ट स्वास्थ्य स्थिति और लक्षणों के आधार पर व्यक्तिगत आहार सलाह के लिए डॉक्टर या पंजीकृत आहार विशेषज्ञ से सलाह लें।
- निगलने में कठिनाई: यदि आपको निगलने में कठिनाई हो रही है, तो तुरंत अपने डॉक्टर या स्पीच थेरेपिस्ट को बताएं। वे सुरक्षित रूप से खाने और पीने के लिए रणनीतियां और आहार संशोधन सुझा सकते हैं।
- दवाओं के साथ परस्पर क्रिया: यदि आप कोई दवा ले रहे हैं, तो सुनिश्चित करें कि आपके द्वारा खाए जा रहे खाद्य पदार्थों का उन पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है।
पोलियो के जोखिम को कैसे कम करें?
पोलियो के जोखिम को कम करने का सबसे प्रभावी तरीका टीकाकरण है। इसके अलावा, कुछ अन्य उपाय भी हैं जिन्हें अपनाकर आप और आपके समुदाय को पोलियो से सुरक्षित रख सकते हैं:
1. टीकाकरण:
- पोलियो वैक्सीन लगवाएं: यह पोलियो से बचाव का सबसे महत्वपूर्ण तरीका है। सुनिश्चित करें कि बच्चों को पोलियो वैक्सीन की सभी आवश्यक खुराकें समय पर लगें। भारत के राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में पोलियो की खुराकें शामिल हैं।
- यात्रा से पहले टीकाकरण की जांच करें: यदि आप ऐसे देशों की यात्रा कर रहे हैं जहाँ पोलियो अभी भी मौजूद है, तो सुनिश्चित करें कि आपका और आपके परिवार का टीकाकरण अद्यतित है। आपको बूस्टर खुराक लेने की सलाह दी जा सकती है।
2. अच्छी स्वच्छता और साफ-सफाई अपनाएं:
- बार-बार हाथ धोएं: साबुन और पानी से कम से कम 20 सेकंड तक अपने हाथों को बार-बार धोएं, खासकर शौचालय का उपयोग करने के बाद, भोजन तैयार करने या खाने से पहले, और बीमार लोगों की देखभाल करने के बाद।
- शौचालय के बाद और डायपर बदलने के बाद हाथ धोना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
- पानी और भोजन की स्वच्छता: सुरक्षित और स्वच्छ पानी पिएं। भोजन को अच्छी तरह से पकाएं और सुरक्षित रूप से स्टोर करें।
- कच्चे फल और सब्जियों को अच्छी तरह से धोएं।
- दूषित सतहों को साफ करें: उन सतहों को नियमित रूप से साफ और कीटाणुरहित करें जो अक्सर छूई जाती हैं, खासकर यदि आपके घर में कोई बीमार है।
- शौचालय को साफ रखें और फ्लश करने के बाद ढक्कन बंद करें ताकि कीटाणु हवा में न फैलें।
3. जागरूकता और निगरानी:
- पोलियो के लक्षणों के बारे में जागरूक रहें: यदि आपको या आपके बच्चे में पोलियो के संभावित लक्षण (जैसे अचानक कमजोरी या लकवा) दिखाई दें, तो तुरंत चिकित्सा सलाह लें।
- रोग निगरानी में सहयोग करें: यदि आपके क्षेत्र में पोलियो के मामले सामने आते हैं, तो सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ सहयोग करें और उनके निर्देशों का पालन करें।
4. सामुदायिक स्तर पर प्रयास:
- टीकाकरण कार्यक्रमों का समर्थन करें: अपने समुदाय में टीकाकरण अभियानों का समर्थन करें और दूसरों को भी टीकाकरण के लिए प्रोत्साहित करें।
- स्वच्छता और साफ-सफाई को बढ़ावा दें: अपने समुदाय में अच्छी स्वच्छता प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए पहल में भाग लें।
सारांश
पोलियो एक संक्रामक रोग है जो पोलियोवायरस के कारण होता है और मुख्य रूप से 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है। यह मल-मुख मार्ग से फैलता है और तंत्रिका तंत्र पर आक्रमण कर लकवा का कारण बन सकता है, जो स्थायी या घातक हो सकता है।
मुख्य बातें:
- कारण: पोलियोवायरस
- फैलाव: मुख्य रूप से मल-मुख मार्ग से, कम बार श्वसन बूंदों से
- लक्षण: अधिकांश में कोई लक्षण नहीं या हल्के फ्लू जैसे लक्षण। लगभग 1% में लकवा (अक्सर पैरों में)।
- खतरा: स्थायी विकलांगता और मृत्यु का कारण बन सकता है।
- बचाव: टीकाकरण सबसे प्रभावी तरीका है।
- उपचार: कोई विशिष्ट इलाज नहीं, लक्षणों का प्रबंधन और सहायक देखभाल महत्वपूर्ण है।
- भारत: 2014 में पोलियो मुक्त घोषित, लेकिन निगरानी और टीकाकरण जारी हैं।